परिचय: भारत और पाकिस्तान ने सोमवार को अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की सूची का आदान-प्रदान किया। यह एक द्विपक्षीय समझौते के तहत हुआ जो दोनों पक्षों को एक-दूसरे की परमाणु सुविधाओं पर हमला करने से रोकता है। सूची का आदान-प्रदान क्यों महत्वपूर्ण है? यह सूची का आदान-प्रदान दोनों देशों के बीच विश्वास और पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि दोनों देशों को एक-दूसरे की परमाणु क्षमताओं की जानकारी हो। यह भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दोनों देशों के बीच परमाणु संघर्ष की संभावना को कम करने में मदद करता है। सूची का आदान-प्रदान कश्मीर मुद्दे के बीच आया है: यह सूची का आदान-प्रदान भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे के साथ-साथ सीमा पार आतंकवाद पर तनाव के बीच आया है। भारत आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के खिलाफ अपना कूटनीतिक आक्रमण जारी रखे हुए है और इस्लामाबाद के साथ तब तक कोई बातचीत नहीं करने की अपनी स्थिति पर कायम है जब तक वह सीमा पार आतंकवाद बंद नहीं कर देता। भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता क्या है? भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं के खिलाफ हमले के निषेध पर समझौता 31 दिसंबर 1988 को हस्ताक्षरित किया गया था। यह संधि 27 जनवरी, 1991 को लागू हुई और इसकी उर्दू और हिंदी में दो-दो प्रतियां हैं। समझौते के तहत, दोनों देश हर साल की पहली जनवरी को एक-दूसरे को अपने सभी परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं की सूची प्रदान करने के लिए बाध्य हैं। इनमें परमाणु ऊर्जा और अनुसंधान रिएक्टर, ईंधन निर्माण, यूरेनियम संवर्धन, आइसो-टोप पृथक्करण, और पुनर्संसाधन सुविधाएं शामिल हैं। निष्कर्ष: भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु प्रतिष्ठानों की सूची का आदान-प्रदान एक महत्वपूर्ण कदम है। यह दोनों देशों के बीच विश्वास और पारदर्शिता को बढ़ावा देने में मदद करता है और परमाणु संघर्ष की संभावना को कम करता है।